पिछली बार जब मैंने अपनी दैट’स स्ट्रेंज सीरीज का ब्लॉग लिखा तो मेरे एक दोस्त ने ऐसे ही पूछ लिया कि क्या सारी अद्भुत जगह सिर्फ विदेशों में है? और मैंने उससे कहा, “बिल्कुल नहीं! भारत तो ऐसे अद्भुत स्थानों की खान है। तुम्हें याद है, मैंने चांद बावड़ी, करणी माता के बारे में ब्लॉग लिखे थे।“
लेकिन इस बातचीत ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं भारत की अद्भुत जगहों के बारे में ब्लॉग लिखना कैसे भूल सकती हूं, जो किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी हैं। इसलिए मेरी दैट’स स्ट्रेंज सीरीज का दसवां ब्लॉग (यूहू! आपके ढेर सारे प्यार के लिए धन्यवाद) भारत के प्रति मेरे समर्पण को दर्शाता है। वैसे, सिर्फ एक ब्लॉग में धार्मिक विश्वास, अलौकिकता, पौराणिक कथाओं और प्रकृति के रहस्यमयी चमत्कारों से भरे स्थानों को समेटना मुमकिन नहीं है, जिन स्थानों ने इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा हो।
अगर धर्म के बारे में बात की जाए तो भारत एक ऐसी जगह है, जहां अलग-अलग मान्यताएं और परम्पराएं मौजूद हैं। यहां के तीर्थ व धार्मिक स्थलों में भगवान के प्रति विश्वास इतना गहरा है कि वह किसी भी नास्तिक को हैरान कर देता है। चलो, हम वाराणसी की इस पूज्य धरती पर अपनी यात्रा शुरू करते हैं और मणिकर्णिका घाट पर मृत्यु के मौन से जुड़ी बातें जानते हैं।
मुझे घूमना-फिरना बहुत पसंद है इसलिए मैंने एडवेंचर, ईको-फ्रैंड्ली, कल्चरल व वर्चुअल जैसी तमाम जगहों की यात्रा की है। लेकिन मुर्दाघाट पर जाना किसी विचित्र व भयानक अनुभव से कम नहीं है। मणिकर्णिका घाट पर एक भी ऐसा दिन नहीं जाता, जब यहां 200-300 शवों का दाह संस्कार न होता हो।
यहां तक कि पर्यटक भी खुले में चिता जलाने की इस क्रिया को देखने के लिए आते हैं क्योंकि यह अनोखी और आकर्षक होती है। दाह संस्कार की क्रिया तब शुरू होती है, जब शव को सफेद कपड़ों में लपेटे अर्थी पर ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए लाया जाता है। इसके बाद दाह संस्कार में उपयोग की जाने वाली लकड़ियों की कीमत उनके वजन और प्रकार के आधार पर तय की जाती है। जितनी तरह की लकड़ियां इस घाट पर मिलती हैं, उनमें से चंदन की लकड़ी सबसे महंगी होती है। लकड़ियों से चिता तैयार करते समय मृत शरीर को गंगा नदी में नहलाया जाता है। वैसे तो इस घाट पर फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी करने की अनुमति नहीं है, लेकिन अधिकतर टूरिस्ट खासकर विदेशी पर्यटक नाव की सैर करते वक्त घाट की फोटो खींच लेते हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया है। लोगों का यह भी मानना है कि यहां हजारों साल तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना की थी और ये प्रार्थना की थी कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी (जिसे पहले वाराणसी कहा जाता था) को नष्ट न किया जाए। श्री विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ काशी आए और उन्होंने भगवान विष्णु की मनोकामना पूरी की। तभी से यह मान्यता है कि वाराणसी में अंतिम संस्कार करने से मोक्ष (अर्थात व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है) की प्राप्ति होती है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदुओं में यह स्थान अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
इस स्थान का नाम महा शमशान कैसे पड़ा इस बात से जुड़े कई किस्से भी हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भगवान शिव और पार्वती के स्नान के लिए यहां विष्णु जी ने कुआं खोदा था, जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी जानते हैं। जब शिव इस कुंड में स्नान कर रहे थे, तब उनका एक कुंडल कुएं में गिर गया तब से इस जगह को मणिकर्णिका (मणि यानि कुंडल और कर्णम मतलब कान) घाट कहा जाने लगा।
मणिकर्णिका घाट पर आपको दिन में हर घंटे दाह संस्कार के मंत्र सुनने को मिल जाएंगे। अनंत शांति के लिए यहां दिन-रात शवों का अंतिम संस्कार होने के कारण यह जगह हर वक्त धुएं से भरी रहती है। यही वजह है कि ज्यादातर आस्थावान लोग इस घाट को स्वर्ग का द्वार मानते हैं।
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स्वर्ग तक ले जाने वाली इस जगह का परिचय कराने के बाद, अब आपको ऐसी जगह ले चलते हैं, जो आपको... लेकिन मेरे अगले ब्लॉग में! बस थोड़ा सा इंतजार।
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